शराब की बढ़ती लत के दुष्परिणाम | ||||||
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गांव में औसतन प्रति व्यक्ति एक महीने में अपने रहने और खाने-पीने पर कुल 1053 रुपये खर्च करता है जबकि एक शहरी व्यक्ति इस पर 1984.46 रुपये खर्च करता है.
हाल में नेशनल सैंपल सर्वे संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक यह तथ्य सामने आया है कि गांव में औसतन प्रति व्यक्ति एक महीने में अपने रहने और खाने-पीने पर कुल 1053 रुपये खर्च करता है जबकि एक शहरी व्यक्ति इस पर 1984.46 रुपये खर्च करता है. इस तरह शहरों में प्रति व्यक्ति उपभोग गांव के मुकाबले 88 प्रतिशत अधिक है. जहां शिक्षा पर शहरी व्यक्ति 160 रुपये प्रतिमाह खर्च करता है वहीं गांव में यह मात्र 37 रुपये है. परन्तु जो तथ्य सबसे अधिक चौंकाता है वह यह कि शराब पीने पर शहर का एक औसत व्यक्ति महीने में जहां 11.32 रुपये खर्च करता है वहीं गांव में रहने वाले व्यक्ति का खर्च 11.62 रुपये है.
संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक संस्था के मादक पदार्थ और अपराध विभाग (यूएनओडीसी) द्वारा जारी विश्व मादक पदार्थ रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान में विश्व की कुल जनसंख्या का पांच प्रतिशत किसी न किसी रूप में मादक पदार्थों का सेवन करता है. इस संदर्भ में अगर भारत की बात की जाए तो लगभग 10.43 प्रतिशत भारतीय किसी न किसी रूप में मादक पदार्थों का सेवन करते हैं.
मादक पदार्थों के रूप में में भारतीय शराब का प्रयोग सर्वाधिक करते हैं. देश के तीव्र आर्थिक विकास और वैश्वीकरण ने सामाजिक मान्यताओं को काफी हद तक परिवर्तित कर दिया है और इस परिवर्तन की पराकाष्ठा यह है कि कुछ क्षेत्रों में शराब पीना 'स्टेसस सिंबल' बन चुका है. इसे 'वर्किंग क्लास कल्चर' का नाम दिया जाने लगा है और इसी सोच का परिणाम है शराब की खपत में लगातार बढ़ोतरी. भारतीय संस्कृति की बदलाव की बयार ने महिलाओं को भी इस लत का शिकार बना दिया है. चकाचौंध से भरी जीवन शैली और मदिरापान को आम स्वीकृति मिलने के बाद किशोर और युवा वर्ग द्वारा नियमित रूप से शराब का प्रयोग किया जा रहा है. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में उन युवाओं की तादाद बढ़ती जा रही है जो येन केन प्रकारेण शराब पीने की शुरुआत करते हैं और फिर इसके आदी हो जाते हैं. कम समय में अधिक से अधिक पाने की चाह ने अथाह तनाव, अवसाद, बेचैनी, चिन्ता जैसी रुग्णताओं को जन्म दिया है और इससे मुक्ति पाने का आसान रास्ता युवा पीढ़ी को शराब का सेवन दिखाई देता है जिससे कुछ पल के लिए ही सही, वह स्वयं को विस्मृत कर देते हैं.
शराब एवं अन्य मादक पदार्थों को तनाव दूर भागने का साधन मानने वाले लोगों को इस बात का अंदाजा नहीं है कि वह स्वयं अपनी मृत्यु को, उनके समीप पहुंचने का सहज और सरल मार्ग उपलब्ध करा रहे हैं. शराब के अधिक सेवन से अल्कोहलिक हेपेटाइटिस हो जाता है जिससे लीवर में सूजन आ जाती है, साथ ही लीवर की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं. लगातार शराब पीने वालों को लीवर सिरोसिस हो जाता है. इस बीमारी में ऊतक इस सीमा तक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं कि ये न केवल रक्त बहाव को बाधित करते हैं बल्कि शरीर के अन्य अंगों को भी बेकार कर देते हैं. भारतीयोंं में ऐसे लोगों की तादाद निरंतर बढ़ती जा रही है जिनमें लीवर की बीमारियों के कारण हेपेटाइटिस के वायरस फैल रहे हैं. पिछले एक दशक में हेपेटाइटिस वायरस फैलने की एक मुख्य वजह शराब का सेवन माना जा रहा है. लीवर संबंधी बीमारियों के कारण 25 हजार भारतीय हर वर्ष मृत्यु का शिकार होते हैं.
शराब का सेवन जहां व्यक्ति विशेष के स्वास्थ्य के लिए घातक है वहीं समाज को भी रुग्णता प्रदान कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार घरेलू हिंसा के लिए जिम्मेदार पुरुषों में से करीब 50 प्रतिशत को नशे का आदी पाया गया है. शराब का सेवन व्यक्ति के उच्च जोखिम व्यवहार की एक विस्तृत श्रृंखला को जन्म देता है. शराब का आदी व्यक्ति सिर्फ स्वयं को प्रभावित नहीं करता बल्कि उसके साथ वह अपने परिवार को भी आर्थिक एवं मानसिक आघात पहुंचाता है. मादक पदार्थ के दुष्चक्र से भारतीय मुक्त हो सकें इसके लिए आवश्यकता है कि सामाजिक और वैधानिक दोनों ही स्तरों पर कठोर कदम उठाए जाएं. इंडियन अल्कोहल पॉलिसी अलाइंस नामक अंतरराष्ट्रीय संस्था ने देश का अल्कोहल एटलस जारी करते हुए बताया कि कैसे शराब से देश को नुकसान हो रहा है.
शराब से जहां देश पर लगातार बीमारियों का बोझ बढ़ रहा है, वहीं सड़क, दुर्घटनाओं की संख्या में भी वृद्धि हो रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार लोगों में शराब के दुष्परिणामों के प्रति चेतना जगाकर, सरकारी स्तर पर शराब के प्रति आकर्षण कम करने और शराब सेवन को बढ़ावा देने वाले कारकों पर अंकुश लगाकर समस्या से निपटा जा सकता है . इसके साथ ही साथ शैक्षणिक एवं दंडात्मक दोनों साधन मादक पदार्थों का सेवन करने वाली युवा पीढ़ी को रोकने के कारगर उपाय
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