मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

HITLAR KA NAZEEVAD

Posted: 26 Mar 2016 09:04 AM PDT
इप्टा के सचिव राकेश से लोकसंघर्ष पत्रिका के प्रबंध संपादक रणधीर सिंह सुमन

भाजपा और आरएसएस में भारतीय व राष्ट्रीय






लगा जरूर होता है लेकिन कोई भारतीय या राष्ट्रीय उनकी सोच और समझ है नहीं. देखा जाए तो इसके बहुत सारे प्रमाण हैं इसके प्रमाण चाहे गोलवलकर के हो, चाहे इटली में मुसोलिनी से मिलना हो, चाहे हिटलर का राष्ट्रवाद हो उसका टू कॉपी (उसकी प्रतिलिपि) अब तो फोटोकॉपी का ज़माना है जो हिटलर का नाजीवाद है वही इनकी हिन्दू संस्कृति है. यह कभी किसी रूप में फिर किसी अन्य रूप में परिभाषित करते हैं. हिटलर के लिए यहूदी नंबर एक के दुश्मन थे. दूसरे नंबर पर कम्युनिस्ट थे. तीसरे पढने लिखने वाले और विवेक की कैफियत रखने वाले लोग उनके दुश्मन थे. उनकी तर्ज पर यहाँ यहूदी नहीं हैं तो मुसलमान नंबर एक पर है और कम्युनिस्ट. संसदीय लोग हों, कम्युनिस्ट जीते या न जीते लेकिन यहाँ और वहां भी यह किया था कि तर्क व बड़ा विवेक मार्क्सवाद ने तैयार किया है इसलिए वह इनके स्वाभाविक रूप से विरोधी हैं.
यह उनकी सोची समझी रणनीति का हिस्सा है. वह अपने क्रियाकलापों को अंजाम देने के लिए नए-नए नारे गढ़ते रहते हैं. सबसे पहले यह 1925 से शुरुवात करते हैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सोच आजादी की लड़ाई के लिए नहीं थी और वीर सावरकर आजादी की लड़ाई में फंसे और अटल 16 साल की उम्र में.  इसके दस्तावेज हैं कि इन दोनों लोगों ने उस समय की अंग्रेज हुकूमत से माफ़ी मांगी थी.
उनकी कोशिश है कि अब दोनों को आजादी का महान योद्धा माना जाए. वीर सावरकर ने जो संकल्प लेकर घोषणा की थी कि ब्रिटिश सरकार का सहयोग करेंगे वह उनके नायक हैं. उनको भी स्थान दिया जा चुका है. यह उनकी एक सोची समझी नीति है. आजादी के बाद उन्होंने पहला निशाना 1948 में गाँधी को बनाया और नेहरु भी उस वक्त खुले में घूमते थे और धर्म विरोधी थे. जितना गाँधी धर्म को मानते थे हिन्दू धर्म और वर्णाश्रम को भी मानते थे लेकिन ऐसा आदमी सांप्रदायिक नहीं था इसीलिए उन्हें निशाना बनाया. दुबारा फिर करवट बदली और संघियों ने गौरक्षा और गौहत्या को मुद्दा बनाया. फिर मुद्दे की तलाश में राम जन्म भूमि का मुद्दा मिला. इसके लिए वह शुरू से काम कर रहे थे. वह लोगों के मन की नियत को पकड़ने की कोशिश की. उन्होंने सरस्वती शिशु मंदिर खोले और साम्प्रदायिक शिक्षा की शुरुवात की. यह सारा काम करते हुए समाज में राजनीतिक पैठ नहीं बन पा रही थी. 1966 के बाद कांग्रेस से मोह भंग होने के बाद भी उनको राजनीतिक मान्यता नहीं मिल पाई. 1975 आपातकाल लागू हुआ तब जेपी के साथ उन्होंने एक रिस्क लिया कि उन्होंने अस्मिता पर दांव लगा दिया. उन्होंने खुद को जनता पार्टी के रूप में अपने अस्तित्व का विलय कर दिया. जब उनकी पैठ सब जगह हो गयी तो उनका पहला राजनैतिक बड़ा अस्तित्व था और उसके बाद जनता दल और जनता पार्टी के विघटन जब तो गया तब 1989 तक आते आते उनका राजनीतिक अस्तित्व सीमित रहा.
राम जन्म भूमि को मुद्दे को एक बड़े मुद्दे के रूप में उछाला और वहां से उग्र हिन्दुवाद जो शुरू किया उसकी परिणीती 2014 के पहले मोदी गुजरात में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण किया और जो कामकाज हुआ और फिर मोदी के समर्थन में पूरा कारपोरेट जगत, मीडिया जुटा और प्रधानमंत्री बना दिया और अब नये नारों की तलाश में निकले हैं. अब धर्म के मुद्दे और राम के मुद्दे अब उनके लिए बासी हो चुके हैं और ऐसी ताकतें भी चाहे अनचाहे जुड़ जाती हैं जो उनके साथ नहीं होनी चाहिए. कट्टर सांप्रदायिक विरोधी भी उनके साथ रिश्ता बना लेते हैं.
              हिटलर का फासीवाद जहाँ से पकड़ा उनको राष्ट्रवाद का नया सूत्र मिला और जो भी है उसे उग्र से उग्र कर रहे हैं. जो इसमें विरोध में तर्क करता है उसपर हमलावर होते हैं जो वर्षों वर्ष में जो तमाम संस्थाएं, विश्व विद्यालय आदि को नष्ट करने का काम कर रहे हैं जिसमें तमाम संस्थाओं में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय एक बड़ा उदहारण है इस हमले में यद्यपि हिन्दू संस्कृति के सबसे ख़राब पक्ष वो लेते हैं जो पक्ष इस देश के दलितों आदिवासियों के विरोध में रहता है उसमें अम्बेडकर को भी सम्मिलित करने, शहीद भगत सिंह व विवेकानंद को भी समायोजित करते हैं जबकि यह सब धार्मिक कट्टरता के प्रबल विरोधी रहे हैं. यह उनकी आगे की रणनीति का हिस्सा है. अब जितने लोग तर्क और विवेक से मुकाबला करेंगे. यह बड़ी लड़ाई होगी और जहाँ ये एक राजनैतिक लड़ाई से ज्यादा सांस्कृतिक लड़ाई होगी जो एक मैदान से ज्यादा लोगों के दिमागों में लड़ी जा रही है.

-इप्टा के सचिव राकेश से लोकसंघर्ष पत्रिका के प्रबंध संपादक रणधीर सिंह सुमन व विनय कुमार सिंह की बातचीत के आधार पर 

अफजल को शहीद घोषित करें तो मुख्यमंत्री

लोकसंघर्ष !


Posted: 30 Mar 2016 04:21 AM PDT
किसान सभा के महामंत्री सत्येन्द्र कुमार
बाराबंकी। अफजल गुरू की फांसी की चर्चा करे तो देशद्रोही और शहीद घोषित करें तो मुख्यमंत्री यह केन्द्र सरकार अच्छे दिन आने की नीति का परिणाम है।
    यह उद्गार व्यक्त करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सहसचिव रणधीर सिंह सुमन ने पवैय्याबाद में किसानों की सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि अच्छे दिनों के कारण देश के अन्दर एक लाख किसानों के किसान कर्ज के मकड़जाल में फंसकर आत्महत्यायें कर ली है वही सरकार कार्पोरेट  सेक्टर के लाखों करोड़ों रूपये की कर्ज माफी कर चुकी है किसान मौत के ऊपर राजनीति करके सैन्य राष्ट्रवाद को विकसित किया जा रहा है। किसान जब खेत और खलिहानों में अन्न उत्पादन कर रहा होता है और उसकी वहां मृत्यु होने पर नकली राष्ट्रवादियों के घडि़याली आंसू भी नहीं निकलते हैं।
    किसान जनसभा के संयोजक मुनेश्वर बख्श वर्मा ने कहा कि किसान सभा के नेतृत्व में पूर्व विधायक राजेन्द्र यादव 17 व 19 मई को बाराबंकी में जनजागरण अभियान प्रारम्भ करेंगे और नकली राष्ट्रवादियों के नकाब को जनता के सामने बेनकाब करेंगे।
    सभा को किसान सभा के महामंत्री सत्येन्द्र कुमार, राजेश सिंह आदि ने सम्बोधित किया। संचालन किसान सभा के अध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने किया सभा के पूर्व रामू एण्ड कम्पनी के नकली राष्ट्रवादियों को बेनकाब करते हुए वाद यंत्रों के साथ गीत गाये। 

KISKEE JEET

लोकसंघर्ष !



Posted: 06 Apr 2016 07:09 AM PDT
पश्चिम बंगाल विधान सभा के चुनाव का पहला चरण पूरा हो चूका है. जंगल महल क्षेत्र की 18 विधान सभा सीटों पर मतदान हो चूका है. मतदान लगभग 82 प्रतिशत हुआ है. मतदान के प्रतिशत बढ़ने पर तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं. ममता विरोधियों का मानना है कि मतदान प्रतिशत बढ़ने से ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को नुकसान होगा. बंगाल के बुद्धिजीवी तबके का मानना है कि वाम मोर्चे के 35 साल के लगातार शासन के बाद जो गुंडागर्दी बढ़ी थी, ममता बनर्जी की पार्टी ने सभी रेकॉर्डों को ध्वस्त करते हुए पांच सालों के अन्दर गुंडागर्दी का नया रिकॉर्ड बना दिया है. विवेकानंद फ्लाईओवर के गिरने के बाद भ्रष्टाचार के संस्थागत होने का परिणाम सामने आया है. यह भी जानकारी में आ रहा है कि हर क्षेत्र की सप्लाई के ऊपर तृणमूल कांग्रेस का कब्ज़ा है. चुनाव में वाम मोर्चा व कांग्रेस एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं तो वहीँ तृणमूल कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी एक सोची समझी रणनीति के तहत अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा जनता को दिखाने के लिए सीधे-सीधे तृणमूल कांग्रेस के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप तो करती है लेकिन भाजपा की स्तिथि बंगाल में वोट कटवा पार्टी के रूप में विकसित हो रही है. बंगाल के एक बुद्धिजीवी ने बातचीत में बताया कि भाजपा को वोट देने का मतलब है तृणमूल कांग्रेस की मदद करना.
                                  बंगाल ने विकास हुवा हो या नही लेकिन गुंडागर्दी का उद्दोग जरुर बढ़ा है  माकपा के राज्य सचिव डॉ सूर्यकांत मिश्र ने कहा था  कि पूरे राज्य में अराजकता की स्थिति बनी हुई है. राज्य में गुटों के बीच झड़प और विस्फोट की घटनाओं को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे बम निर्माण ही राज्य का लघु और कुटीर उद्योग बन गया है. बंगाल से राज्यसभा सदस्य रहे अहमद सईद 'मलिहाबादी' ने सीधे तौर पर कहा कि ममता के सरकार में आने का मतलब है की बंगाल के अन्दर मोदी की सरकार को कायम करना है और बंगाल चुनाव के बाद तृणमूल कांग्रेस केंद्र में सत्तारूढ़ दल की मदद में रहेगी.तृणमूल कांग्रेस व भाजपा बंगाल में नूराकुश्ती लड़ रही है.
बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के कुशासन के कारण बहुत बुद्धिजीवियों का एक बहुत बड़ा हिस्सा सरकार के विरोध में है और उसकी कोशिश है कि तृणमूल कांग्रेस को आगे सरकार बनाने का मौका न मिले वहीँ, जनता के विभिन्न तबकों से बातचीत के बाद यह बात उभर कर आ रही है कि तृणमूल कांग्रेस का शासन में आना आसान नहीं है और जिस तरह से स्तिथियाँ बदल रहीं हैंउससे लगता है कि छठे चरण तक  का मतदान आते-आते तृणमूल कांग्रेस का मत प्रतिशत कम होते-होते उसको सत्ता से बेदखल कर सकता है.
-सुमन
लो क सं घ र्ष !