शनिवार, 19 सितंबर 2015

साथ तुम्हारा इन्कलाब नारा इस कदर भा गया

साथ तुम्हारा इन्कलाब नारा इस कदर भा गया 
मकसद वीरान जिन्दगी का जैसे फिर से पा गया 
मोम के घरों में बैठे लोग हमारे घर जलाने आये 
जला दिए हमारे मग़र अपने भी ना बचा पाये 
तबाह कर दिया जहान को मुनाफा हमें खा गया 
रास्ता ही गल्त पकड़ा हमें भी उसी पर चलाया है 
स्वर्ग नर्क के पचड़े में तुम्हीं ने हमको  फंसाया है  
भगवान और बाबाओं का खेल समझ में आ गया 
आशा बाबू एक  प्रवचन के कई लाख कमाते हैं 
निर्मल बाबू नकली लोग पैसे दे कर के  बुलाते हैं 
भगवान की आड़ में मुनाफा दुनिया पर छा गया 
जात गौत उंच नीच देश प्रदेश में दुनिया  बंटी 
फेंकी जा रही उम्मीदें और हम भी गफलत में हैं 
गंगा जमनी हमारी विरासत पर हमला बोल दिया 
घृणा और नफरत देश में आज बना माहौल दिया 
सजग रहना है हम सबको करना है संघर्ष मिलके 
बढ़ती बेरोजगारी के खिलाफ भाई चारे के लिए  
मेरे हिस्साब से  हम आज के सन्दर्भ में पुरानी कल्चर के बेहतर पक्षों की नीव पर एक बेहतर सर्वमान्य ग्रामीण कल्चर का विकास करना  चाहते है | इसके लिए पुराने की और तथाकथित आधुनिक की समीक्षा करके ही हम एक मानवीय समाज और संस्कृति का विकास कर सकते हैं । 

BHOLE KISAN



बाकी रहती  कोन्या जब हाल देखूं  किसान तेरा । 
रोम रोम करणा ज्यावै यो कई बरियां सुण मेरा । 

ट्रेक्टर की बाही मारै  ट्यूबवैल का रेट  सतावै
थ्रेशर की कढ़ाई मारै  भा फसल का ना थ्यावै
फल सब्जी ढूध  सीत सब ढोलां मैं घल ज्यावै
माटी गेल्याँ माटी होकै बी सुख का साँस ना आवै
बैंक मैं सारी धरती जाली दीख्या चारों कूट अँधेरा। 
 
निहाले पै रमलू तीन रूपया सैकड़े पै ल्यावै
वो साँझ नै रमलू धोरे दारू पीवन नै आवै
निहाला कर्ज की दाब मैं बदफेली करना चाहवै
विरोध करया तो रोज पीस्याँ की दाब लगावै
बैंक अल्यां की जीप का बी रोजाना लग्या फेरा। 

बेटा बिन ब्याह हाँडै सै घर मैं बैठी बेटी कंवारी
रमली रमलू नयों बतलाये मुशीबत कट्ठी  होगी सारी 
खाद बीज नकली मिलते होगी ख़त्म सब्सिडी  म्हारी
माँ टी बी की बीमार होगी बाबू कै दमे  की बीमारी
रौशनी कितै दीखती कोन्या घर मैं टोटे का डेरा। 
 
माँ अर बाबू म्हारे  नै  यो जहर धुर की नींद सवाग्या
माहरे घर का जो हाल हुआ वो सबके साहमी आग्या  
जहर क्यूं खाया उनने यो सवाल कचौट कै खाग्या   
म्हारी कष्ट कमाई उप्पर कोए दूजा दा क्यों लाग्या
कर्जा बढ़ता गया म्हारा मरग्या रणबीर सिंह कमेरा । 
शराफत के लिए जगह कहाँ  छोड़ी है अडानी जी ने 
एक तरफ बेरोजगारी की मार है और दूसरी तरफ अंध उपभोग की लंपट संस्कृति का अंधाधुंध प्रचार है इनके बीच में घिरे ये युवक युवती लंपटीकरण का शिकार तेजी से होते जा रहे हैं !स्थगित रचनात्मक उर्जा से भरे युवाओं को हफ्ता वसूली ]नशा खोरी ]अपराध और दलाली के फलते फूलते कारोबार अपनी तरफ खींच रहे हैं