एक बै एक साड़ी बेचन आला गाम मैं आग्या | उसने एक घरबारन को कहया -- देखै के सै घनी बढ़िया साड़ी सै | बस चालीस रपईयाँ की | ले कै देख | सारी उमर याद राखैगी | घर बारन बोली --- ना बाबा ना | इसका रांग कच्चा निकल गया तो मैं क्या करूंगी ? देनी है तो बीस रपयीयों में दे दे | घनी ए वार खींच तान चलती रही | हार कै साड़ी आला बोल्या -- चाल जो तेरा जी करै वो दे दे | घरबारण नै साड़ी के बीस रपईये दे दिए | उस दिन पीछे उसने साड़ी का पैंडा ए ना छोड्या | पड़ोसन कहती ---हाय ! कितनी बढ़िया साड़ी ! कित तैं खरीद कै ल्याई ?
हफ्ते मैं मैली करदी साड़ी | घरबारण गयी जोहड़ पै साड़ी धोवन | सारा जोहड़ लाल कर दीया साड़ी नै | सारा रंग छूट ग्या | छूटती ए बोली -- ओहले म नै के बेरा था रंग उतर ज्यागा | पर उस कै बाकी कति नहीं रही | नयों बोली --आवन दे जाये रोये नै | पीसे उलटे नहीं लिए तो मेरा भी नाम धमलो नहीं | फेर एक मिहना बाट देखी पर जाये रोया कोनी आया | रमलू बोल्या --इसी इसी तो इब्बी रैहरी सें म्हारे गाम मैं | भैंसवाल मैं तो सुन्या करते अक वहां के लोग बावले सें | एक भैंसवाल का रिश्तेदार आरया था ओ बोल्या अक ईब कोन्या रैहरे बावले | रमलू नै फेर एक चुटकला सुनाया ----
म्हारा एक कलास फैलो था धनपत खरखौदे का ओ ब्याह दिया भैंसवाल | नया नया ब्याह | दोनूं फिल्म देखण चाले गये राज टाकीज मैं | फिल्म शुरू होगी | न्यूज आई | उसमें कई बूढ़े बैठे होक्का पीवन लागरे थे | देखते की साथ धनपत की बहु नै तै एक हाथ लम्बा घूँघट कर लिया | हाफ टेम हुया तै धनपत नै बुझी अक किसी लागी फिल्म ? तै वा बोली शुरू होंते की साथ वे बूढ़े आगे थे | मने तो जिब घूँघट कर लिया था | फिल्म कोन्या देखण पाई | ओ भैंसवालिया बी सुनै था ओ बोल्या उसनै तो कदे गाम मैं घूँघट ना काढ्या तै वहां क्यूकर काढ लिया ? कमलू अर ठमलू जोर के हंस पड़े अर बोले अक यो ठीक कहवै सै रमलू अक भैंस वाल के लोग इब्बी बावले रैहरे सें | भैंस वाल की छोरी भैंसवाल मैं घूँघट थोड़े ए ना काढैगी|
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