आज के दौर के लेख
रविवार, 20 सितंबर 2015
तिनका
कबहुँ
ना
निंदये
,
जो
पाँव
तले
होय
।
कबहुँ
उड़
आँखो
पड़े
,
पीर
घानेरी
होय
॥
संत कबीर
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