शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

Haryana perspective

हरयाणा का सामाजिक सांस्कृतिक परिदृष्य 
रणबीर सिंह दहिया
हरयाणा एक कृषि प्रधान प्रदेश के रूप में जाना जाता है राज्य के समृद्ध और सुरक्षा के माहौल में यहाँ के किसान और मजदूर , महिला और पुरुष ने अपने खून पसीने की कमाई से नई तकनीकों , नए उपकरणों , नए खाद बीजों पानी का भरपूर इस्तेमाल करके खेती की पैदावार को एक हद तक बढाया , जिसके चलते हरयाणा के एक तबके में सम्पन्नता आई मगर हरयाणवी समाज का बड़ा हिस्सा इसके वांछित फल नहीं प्राप्त कर सका
यह एक सच्चाई है कि हरयाणा के आर्थिक विकास के मुकाबले में सामाजिक विकास बहुत पिछड़ा रहा है ऐसा क्यों हुआ ? यह एक गंभीर सवाल है और अलग से एक गंभीर बहस कि मांग करता है हरयाणा के सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र पर शुरू से ही इन्ही संपन्न तबकों का गलबा रहा है यहाँ के काफी लोग फ़ौज में गए और आज भी हैं मगर उनका हरयाणा में क्या योगदान रहा इसपर ज्यादा ध्यान नहीं गया है इसी प्रकार देश के विभाजन के वक्त जो तबके हरयाणा में आकर बसे उन्होंने हरयाणा कि दरिद्र संस्कृति को कैसे प्रभावित किया  इस पर भी गंभीरता से सोचा जाना शायद बाकी है   क्या हरयाणा की संस्कृति महज रोहतक जींद सोनेपत जिलों कि संस्कृति है ?  क्या हरयाणवी डायलैक्ट एक भाषा का रूप ले ले सकता है ? महिला विरोधी , दलित विरोधी तथा प्रगति विरोधी तत्वों को यदि हरयाणवी संस्कृति से बाहर कर दिया जाये तो हरयाणवी संस्कृति में स्वस्थ पक्ष क्या बचता है ? इस पर समीक्षात्मक रुख अपना कर इसे विश्लेषित करने कि आवश्यकता है। क्या पिछले दस पन्दरा सालों में और ज्यादा चिंताजनक पहलू हरयाणा के सामाजिक सांस्कृतिक माहौल में शामिल नहीं हुए हैं ?व्यक्तिगत स्तर पर महिलाओं और पुरुषों ने बहुत सारी सफलताएँ हांसिल की हैं । समाज के तौर पर 1857 की आजादी की पहली जंग में सभी वर्गों एसभी मजहबों सभी जातियों के महिला पुरुषों का सराहनीय योगदान रहा है इसका असली इतिहास भी कम लोगों तक पहुँच सका है । 
हमारे हरियाणा के गाँव में पहले भी और कमोबेश आज भी गाँव की संस्कृति , गाँव की परंपरा , गाँव की इज्जत शान के नाम पर बहुत छल प्रपंच रचे गए हैं और वंचितों, दलितों महिलाओं के साथ न्याय कि बजाय बहुत ही अन्याय पूर्ण व्यवहार किये जाते रहे हैं उदाहरण के लिए हरियाणा के गाँव में एक पुराना तथाकथित भाईचारे सामूहिकता का हिमायती रिवाज रहा है कि जब भी तालाबजोहड़-कि खुदाई का काम होता तो पूरा गाँव मिलकर इसको करता था ।  रिवाज यह रहा है कि गाँव की हर देहल से एक आदमी तालाब कि खुदाई के लिए जायेगा। पहले हरियाणा के गावों क़ी जीविका पशुओं पर आधारित ज्यादा रही है द्यगाँव के कुछ घरों के पास 100 से अधिक पशु होते थेइन पशुओं का जीवन गाँव के तालाब के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा  होता था । गाँव क़ी बड़ी आबादी के पास ज़मीन होती थी पशु होते थे । अब ऐसे हालत में एक देहल पर तो सौ से ज्यादा पशु है वह भी अपनी देहल से एक आदमी खुदाई के लिए भेजता था और बिना ज़मीन पशु वाला भी अपनी देहल से एक आदमी भेजता था। वाह कितनी गौरवशाली और न्यायपूर्ण परंपरा थी हमारी।  यह तो महज एक उदाहरण है परंपरा में गुंथे अन्याय को न्याय के रूप में पेश करने का। 
             महिलाओं के प्रति असमानता अन्याय पर आधारित हमारे रीति रिवाज , हमारे गीत , चुटकले हमारी परम्पराएँ आज भी मौजूद हैं ।  इनमें मौजूद दुभांत को देख पाने क़ी दृष्टि अभी विकसित होना बाकी है। लड़का पैदा होने पर लडडू बाँटना मगर लड़की के पैदा होने पर मातम मनाना , लड़की होने पर जच्चा को एक धडी घी और लड़का होने पर दो धडी घी देना, लड़के क़ी छठ मनाना, लड़के का नाम करण संस्कार करना, शमशान घाट में औरत को जाने क़ी मनाही , घूँघट करना , यहाँ तक कि गाँव कि चौपाल से घूँघट करना आदि बहुत से रिवाज हैं जो असमानता अन्याय पर टिके हुए हैं। सामंती पिछड़ेपन सरमायेदारी बाजार के कुप्रभावों के चलते महिला पुरुष अनुपात चिंताजनक स्तर तक चला गया है ।  मगर पढ़े लिखे हरयाणवी भी इनका निर्वाह करके बहुत फखर महसूस करते हैं।  यह केवल महिलाओं की संख्या कम होने का मामला नहीं है बल्कि सभ्य समाज में इंसानी मूल्यों की गिरावट और पाशविकता को दर्शाता है ।  हरियाणा में पिछले कुछ सालों से यौन अपराध , दूसरे राज्यों से महिलाओं को खरीद के लाना और उनका यौन शोषण तथा बाल विवाह आदि का चलन बढ़ रहा है ।   सती ,बाल विवाह , अनमेल विवाह के विरोध में यहाँ बड़ा सार्थक आन्दोलन नहीं चला ।  स्त्री शिक्षा पर बल रहा मगर को एजुकेसन का विरोध किया गया , स्त्रियों कि सीमित सामाजिक भूमिका की भी हरयाणा में अनदेखी की गयी | उसको अपने पीहर की संपत्ति में से कुछ नहीं दिया जा रहा जबकि इसमें उसका कानूनी हक़ है । चुन्नी उढ़ा कर शादी करके ले जाने की बात चली है ।  दलाली, भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से पैसा कमाने की बढती प्रवृति चारों तरफ देखी जा सकती हैयहाँ समाज के बड़े हिस्से में अन्धविश्वास , भाग्यवाद , छुआछूत , पुनर्जन्मवाद , मूर्तिपूजा , परलोकवाद , पारिवारिक दुश्मनियां , झूठी आन.बाण के मसले, असमानता , पलायनवाद , जिसकी लाठी उसकी भैंस , मूछों के खामखा के सवाल , परिवारवाद ,परजीविता ,तदर्थता आदि सामंती विचारों का गहरा प्रभाव नजर आता है ।  ये प्रभाव अनपढ़ ही नहीं पढ़े लिखे लोगों में भी कम नहीं हैं |  हरयाणा के मध्यमवर्ग का विकास एक अधखबडे मनुष्य के रूप में हुआ। 
          तथाकथित स्वयम्भू पंचायतें नागरिक के अधिकारों का हनन करती रही हैं और महिला विरोधी दलित विरोधी तुगलकी फैसले करती रहती हैं और इन्हें नागरिक को मानने पार मजबूर करती रहती हैं । राजनीति प्रशासन मूक दर्शक बने रहते हैं या चोर दरवाजे से इन पंचातियों की मदद करते रहते हैं । अब तो खुलकर इनकी प्रशंसा भी कर रहे हैं कुछ नेता ।  यह  मध्यम वर्ग भी कमोबेश इन पंचायतों के सामने घुटने टिका देता है हरयाणा में सर्व खाप पंचायतों द्वारा जाति, गोत ,संस्कृति ,मर्यादा आदि के नाम पर महिलाओं के नागरिक अधिकारों के हनन में बहुत तेजी आई है और अपना सामाजिक वर्चस्व बरक़रार रखने के लिए जहाँ एक ओर ये जातिवादी पंचायतें घूँघट , मार पिटाई , शराब ,नशा ,लिंग पार्थक्य ,जाति के आधार पर अपराधियों को संरक्षण देना आदि सबसे पिछड़े विचारों को प्रोत्साहित करती हैं वहीँ दूसरी ओर साम्प्रदायिक ताकतों के साथ मिलकर युवा लड़कियों की सामाजिक पहलकदमी और रचनात्मक अभिव्यक्ति को रोकने के लिए तरह तरह के फतवे जारी करती हैं | जौन्धी और  नयाबांस की घटनाएँ तथा इनमें इन पंचायतों द्वारा किये गए तालिबानी फैंसले जीते जागते उदाहरण हैं युवा लड़कियां केवल बाहर ही नहीं बल्कि परिवार में भी अपने लोगों द्वारा यौन.हिंसा और दहेज़ हत्या की शिकार हों रही हैं |  ये पंचायतें बड़ी बेशर्मी से बदमाशी करने वालों को बचाने की कोशिश करती है। अब गाँव की गाँव गोत्र की गोत्र और सीम के लगते गाँव के भाईचारे की गुहार लगाते हुए हिन्दू विवाह कानून 1955 में संसोधन की बातें की जा रही हैं , धमकियाँ दी जा रही हैं और जुर्माने किये जा रहे हैं । रियाणा के रीति रिवाजों की जहाँ एक तरफ दुहाई देकर संशोधन की मांग उठाई जा रही है वहीँ fjयाणा की ज्यादतर आबादी के रीति रिवाजों की अनदेखी भी की जा रही है । 
           गाँव की इज्जत के नाम पर होने वाली जघन्य हत्याओं की रियाणा में बढ़ोतरी हो  रही है समुदाय , जाति या परिवार की इज्जत बचाने के नाम पर महिलों को पीट पीट कर मार डाला जाता है , उनकी हत्या कर दी जाती  है या उनके साथ बलात्कार किया जाता है ।  एक तरफ तो महिला के साथ वैसे ही इस तरह का व्यवहार किया जाता है जैसे उसकी अपनी कोई ''इज्जत'' ही हों , वहीaaaaa उसे समुदाय की ‘’इज्जत’’ मान लिया जाता है और जब समुदाय बेइज्जत होता है तो हमले का सबसे पहला निशाना वह महिला और उसकी ''इज्जत'' ही बनती है । अपनी पसंद से शादी करने वाले युवा लड़के लड़कियों को इस ''इज्जत'' के  नाम पर सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया जाता है । 
           यहाँ के प्रसिद्ध संगियों हरदेवा , लख्मीचंद , बाजे भगत ,मेहर सिंह ,मांगेराम ,चंदरबादी, धनपत ,खेमचंद दयाचंद की रचनाओं का गुणगान तो बहुत किया गया या हुआ है मगर उनकी आलोचनात्मक समीक्षा की जानी अभी बाकी है ।  रागनी कम्पीटिसनों का दौर एक तरह से काफी कम हुआ हैऑडियो कैसेटों की जगह सीडी लेती जा रही है जिनकी सार वस्तु में पुनरुत्थान वादी अंध उपभोग्तवादी मूल्यों का घालमेल साफ नजर आता है | रियाणा के लोकगीतों पर भी समीक्षातमक काम कम हुआ है  महिलाओं के दुःख दर्द का चित्रण काफी है। हमारे त्योहारों के अवसर के बेहतर गीतों की बानगी भी मिल जाती   है । 
        गहरे संकट के दौर में हमारी धार्मिक आस्थाओं को साम्प्रदायिकता के उन्माद में बदलकर हमें जात गोत्र धर्म के ऊपर लडवा कर हमारी इंसानियत के जज्बे को , हमारे मानवीय मूल्यों को विकृत किया जा रहा है। गऊ हत्या या गौ-रक्षा के नाम पर हमारी भावनाओं से खिलवाड़ किया जाता हैदुलिना हत्या कांड और अलेवा कांड गौ के नाम पर फैलाये जा रहे जहर का ही परिणाम हैं। इसी धार्मिक उन्माद और आर्थिक संकट के चलते हर तीसरे मील पर मंदिर दिखाई देने लगे हैं । राधास्वामी और दूसरे सैक्टों का उभार भी देखने को मिलता है । 
         सांस्कृतिक स्तर पर हयाणा के चार पाँच क्षेत्र है और इनकी अपनी विशिष्टताएं हैंहरेक गाँव में भी अलग अलग वर्गों जातियों के लोग रहते हैं । एक गाँव में कई गांव बस्ते हैं । जातीय भेदभाव एक ढंग से कम हुए हैं मगर अभी भी गहरी जड़ें जमाये हैं । आर्थिक असमानताएं बढ़ रही हैं ।  सभी सामाजिक नैतिक बंधन तनावग्रस्त होकर टूटने के कगार पर हैंबेरोजगारी बेहताशा बढ़ी है। मजदूरी के मौके भी कम से कमतर होते जा रहे हैं । मजदूरों का जातीय उत्पीडन भी बढ़ा है। दलितों पर अन्याय बढ़ा है वहीँ उनका असर्सन भी बढ़ा हैकुँए अभी भी अलग अलग हैं । परिवार के पितृसतात्मक ढांचे में परतंत्रता बहुत ही तीखी हों रही है । पारिवारिक रिश्ते नाते ढहते जा रहे हैं । मगर इनकी जगह जनतांत्रिक ढांचों का विकास नहीं हों रहातलाकों  के केसिज की संख्या कचहरियों में बढती जा रही है । इन सबके चलते महिलाओं और बच्चों पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है । मजदूर वर्ग सबसे ज्यादा आर्थिक संकट की गिरफ्त में है  खेत मजदूरों , भठ्ठा मजदूरों , दिहाड़ी मजदूरों माईग्रेटिड मजदूरों का जीवन संकट गहराया है लोगों का गाँव से शहर को पलायन बढ़ा है। 
                      कृषि में मशीनीकरण बढ़ा है । तकनीकवाद का जनविरोधी स्वरूप ज्यादा उभार कर आया है । ज़मीन की दो ढाई एकड़ जोत पर 80  प्रतिशत के लगभग किसान पहुँच गया है । ट्रैक्टर ने बैल की खेती को पूरी तरह बेदखल कर दिया हैथ्रेशर और हार्वेस्टर कम्बाईन ने मजदूरी के संकट को बढाया है।सामलात जमीनें खत्म सी हों रही हैं कब्जे कर लिए गए या आपस में जमीन वालों ने बाँट ली। अन्न की फसलों का संकट है। पानी की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है नए बीज,नए उपकरण , रासायनिक खाद कीट नाशक दवाओं के क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की दखलंदाजी ने इस सीमान्त किसान के संकट को बहुत बढ़ा दिया हैप्रति एकड़ फसलों की पैदावार घटी है जबकि इनपुट्स की कीमतें बहुत बढ़ी हैं। किसान का कर्ज भी बढ़ा हैस्थाई हालातों से अस्थायी हालातों पर जिन्दा रहने का दौर तेजी से बढ़ रहा है । अन्याय अत्याचार बेइन्तहा बढ़ रहे हैं  किसान वर्ग के इस हिस्से में उदासीनता गहरे पैंठ गयी है और एक निष्क्रिय परजीवी जीवन , ताश खेल कर बिताने की प्रवृत्ति  बढ़ी है । हाथ से काम करके खाने की प्रवृत्ति का पतन हुआ है । साथ ही साथ दारू सुल्फे का चलन भी बढ़ा है और स्मैक जैसे नशीले पदार्थों की खपत बढ़ी है । मध्यम वर्ग के एक हिस्से के बच्चों ने अपनी मेहनत के दम पर सॉफ्ट वेयर आदि के क्षेत्र में काफी सफलताएँ भी हांसिल की हैंमगर एक बड़े हिस्से में एक बेचैनी भी बखूबी देखी जा सकती हैकई जनतांत्रिक संगठन इस बेचैनी को सही दिशा देकर जनता के जनतंत्र की लडाई को आगे बढ़ाने में प्रयास रत दिखाई देते हैंअब समर्थन का ताना बाना टूट गया है और हरियाणा में कृषि का ढांचा बैठता जा रहा है ।  इस ढांचे को बचाने के नाम पर जो नई कृषि नीति  परोसी जा रही है उसके पूरी तरह लागू होने के बाद आने वाले वक्त में ग्रामीण आमदनी , रोजगार और खाद्य सुरक्षा की हालत बहुत भयानक रूप धारण करने जा रही है और साथ ही साथ बड़े हिस्से का उत्पीडन भी सीमायें लांघता जा रहा है और  इनकी दरिद्र्ता बढ़ती जा रही है । नौजवान सल्फास की गोलियां खाकर या फांसी लगाकर आत्म हत्या को मजबूर हैं। 
                 गाँव के स्तर पर एक खास बात और पिछले कुछ सालों में उभरी है वह यह की कुछ लोगों के प्रिविलेज बढ़ रहे हैं । इस नव धनाड्य वर्ग का गाँव के सामाजिक सांस्कृतिक माहौल पर गलबा है। पिछले सालों के बदलाव के साथ आई छद्म सम्पन्नता , सुख भ्रान्ति और नए नए सम्पन्न तबकों (परजीवियों , मुफतखोरों और कमीशन खोरों ) में गुलछर्रे उड़ाने की अय्यास कुसंस्कृति तेजी से उभरी है|नई नई कारें , कैसिनो , पोर्नोग्राफी ,नगी फ़िल्में , घटिया केसटें ,हरयाणवी पॉप , साइबर सैक्स ,नशा फुकरापंथी , कथा वाचकों के प्रवचन , झूठी हैसियत का दिखावा इन तबकों की सांस्कृतिक दरिद्र्ता को दूर करने के लिए अपनी जगह बनाते जा रहे हैंजातिवाद साम्प्रदायिक विद्वेष ,युद्ध का उन्माद और स्त्री द्रोह के लतीफे चुटकलों से भरे हास्य कवि सम्मलेन बड़े उभार पर हैं। इन नव धनिकों की आध्यात्मिक कंगाली नए नए बाबाओं और रंग बिरंगे कथा वाचकों को खींच लाई है विडम्बना है की तबाह हो रहे तबके भी कुसंस्कृति के इस अंध उपभोगतावाद से छद्म ताकत पा रहे हैं। 
                     दूसरी तरफ यदि गौर करें तो सेवा क्षेत्र में छंटनी और अशुरक्षा का आम माहौल बनता जा रहा है इसके बावजूद कि विकास दर ठीक बताई जा रही है। कई हजार कर्मचारियों के सिर पर छंटनी कि तलवार चल चुकी है और बाकी कई हजारों के सिर पर लटक रही है । सैंकड़ों फैक्टरियां बंद हो चुकी हैंबहुत से कारखाने यहाँ से पलायन कर गए हैं। छोटे छोटे कारोबार चौपट हो रहे हैंसंगठित क्षेत्र सिकुड़ता और पिछड़ता जा रहा है। असंगठित क्षेत्र का तेजी से विस्तार हो रहा हैफरीदाबाद उजड़ने कि राह पर है।  सोनीपत सिसक रहा है। पानीपत का हथकरघा उद्योग गहरे संकट में हैयमुना नगर का बर्तन उद्योग चर्चा में नहीं है , सिरसा , हांसी रोहतक की धागा मिलें बंद हो गयीधारूहेड़ा में भी स्थिलता साफ दिखाई देती है । 
          शिक्षा के क्षेत्र में बाजार व्यवस्था का लालची दुष्ट्कारी खेल सबके सामने अब आना शुरू हो गया है सार्वजनिक क्षेत्र में  पचास  साल में खड़े किये ढांचों को या तो ध्वस्त किया जा रहा है या फिर कोडियों के दाम बेचा जा रहा है शिक्षा आम आदमी की पहुँच से दूर खिसकती जा रही है शिक्षा के क्षेत्र में जहाँ एक और एजुकेशन हब बनाने के दावे किये जा रहे हैं और नए नए विश्वविद्यालयों  का खोलना एक अचीवमैंट  के रूप में पेश किया जा रहा है वहीं दूसरी ओ सरकारी स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता कई तरह से प्रभावित हुई है शिक्षा की प्राइवेट दुकानों में भी शिक्षा की गुणवत्ता का तो प्रश्न ही नहीं बल्कि शिक्षा को व्यापार बना दिया गया है चाहे वह स्कूली शिक्षा हो चाहे वह उच्च शिक्षा हो , चाहे वह विश्वविद्यालयों की शिक्षा हो या ट्रेनिंग संस्थाओं की शिक्षा हो , हरेक क्षेत्र में व्यापारीकरण और पैसे के दम पर डिग्रीयों का कारोबार बढ़ा है   दलाल संस्कृति ने इस क्षेत्र में दलाल माफियायों की बाढ़ सी लादी है सेमेस्टर सिस्टम ने भी शिक्षा के स्तर को बढ़ाया तो बिलकुल भी नहीं हां  घटाया बेशक हो इंस्टीच्युट खोल दिए गए कई कई सौ करोड़ की इमारतें खड़ी करके मगर उनकी फैकल्टी और उनकी कार्य प्रणाली की किसी को कोई चिंता नहीं है  विश्वविद्यालयों के उपकुलपतियों की नियुक्तियों में यू जी सी की गाइड लाइन्स की धजियां उड़ाई जाती रही हैं सबके लिए एक समान स्कूल की अनदेखी की जाती रही है जबकि यह सम्भव है
       स्वास्थ्य के क्षेत्र में और भी बुरा हाल हुआ  है गरीब मरीज के लिए सभी तरफ से दरवाजे बंद होते जा रहे हैं लोगों को इलाज के लिए अपनी जमीनें बेचनी पड़ + रही हैं आरोग्य कोष या राष्ट्रिय बीमा योजनाएं ऊँट के मुंह  में जीरे के समान हैं उसमें भी कई सवाल उठ रहे हैं । स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्राइवेट सैक्टर की दखलंदाजी बढ़ी है एम्पैनलमेंट  का कारोबार खूब चल रहा है सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं जैसे तैसे स्टाफ की कमी ,डाक्टरों की कमी , कहीं कुछ और कमियों के चलते  घिसट रही हैं गरीब जन की सेहत के लिए सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से इलाज के रास्ते बंद होते जा रहे हैं जितनी भी स्वास्थ्य सेवा की योजनाएं गरीबों के लिए हैं उनमें एक्जीक्यूसन की भारी कमियां हैं और योजना में भी कई कमियां हैं प्राइवेट नर्सिंग होम के लिए केंद्र में पारित एक्ट भी हरियाणा में लागू नहीं किया है इसलिए प्राइवेट  नर्सिंग होम्ज की लूट दिनोदिन अमानवीय रूप अख्तियार करते हुए बढ़ती जा रही है सरकारी हॉस्पिटलों  में सी टी स्कैन की महीनों लम्बी तारीखें दी जाती हैमुख्य मंत्री मुफ्ती इलाज योजना सैद्धांतिक तोर पर बहुत ठीक योजना होते हुए भी इसकी एक्जीक्यूसन बहुत ढीली ढाली चली अब बन्द होने के कगार पर है इसके लिए मॉनिटरिंग कमेटीज का प्रावधान नहीं रखा गया था खून की कमी एनएफएचएस के मुकाबले एनएफएचएस 4 में गर्भवती महिलाओं में बढ़ी है इसी प्रकार कुपोषण (मालन्यूट्रिसन) भी बच्चों में बढ़ा है गरीब के लिए मुफ्त इलाज भी महंगा होता जा रहा है। इलाज के लिए जेब से किया खर्च बहुत बढ़ गया है। एम बी बी एस की फीसें प्रिवेट कालेजों  एक करोड़ के लगभग कर दी गयी हैं।डॉक्टरों का शोषण करके मुनाफा कमाने का कॉरपोरेट का खेल मरीजों को भी समझ नहीं आ रहा है । 
             आज के दिन व्यापार धोखाधड़ी में बदल चुका  है यही हाल हमारे यहाँ की ज्यादातर राजनैतिक पार्टियों का हो चुका है आज के दिन हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा ने दुश्मनी का रूप ले लिया है हरियाणा में दरअसल सभ्य भाषा का विकास ही नहीं हो पाया है लठ की भाषा का प्रचलन बढ़ा है भ्रम व अराजकता का माहौल बढ़ा है लोग किसी भी तरह मुनाफा कमाकर रातों रात करोड़पति से अरब पति बनने  के सपने देखते हैं मनुष्य की मूल्य व्यवस्था ही उसकी विचारधारा होती है मनुष्य कितना ही अपने को गैर राजनैतिक मानने की कोशिश करे फिर भी वह अपनी जिंदगी  में मान मूल्यों का निर्वाह करके इस या उस वर्ग की राजनीति कर रहा होता है विचार धारा का अर्थ है कोई समूह ,समाज या मनुष्य खुद को अपने चारों ओर की दुनिया को , अपनी वास्तविकता को कैसे देखता है इस सांस्कृतिक क्षेत्र के भिन्न भिन्न पहलू हैं धर्म, परिवार , शिक्षा , प्रचार माध्यम , सिनेमा टी वी ,रेडियो ,ऑडियो ,विडिओ ,अखबार , पत्र -पत्रिकाएँ , अन्य लोकप्रिय साहित्य , संस्कृति के अन्य लोकप्रिय रूप जिनमें लोक कलाएं ही नहीं जीवन शैलियों से लेकर तीज त्यौहार , कर्मकांड , विवाह , मृत्यु भोज आदि तो हैं ही , टोने टोटके , मेले ठेले भी शामिल हैं इतिहास और विचारधारा की समाप्ति की घोषणा करके एक सीमा तक भ्रम अवश्य फैलाया जा सकता है मगर वर्ग संघर्ष को मिटाया नहीं जा सकता यही प्रकृति का नियम भी है और विज्ञान सम्मत भी इंसान पर निर्भर करता है कि वह मुठठी  भर लोगों के विलास बहुल जीवन की झांकियों को अपना आदर्श मानते हुए स्वप्न लोक के नायक और नायिकाओं के मीठे मीठे प्रणय गल्पों में मजा ले ,  मानव मानवी की अनियंत्रित यौन आकांक्षाओं को जीवन की सबसे बड़ी प्राथमिकता के रूप में देखें , औरत की देह को जीवन का सबसे सुरक्षित क्षेत्र बना डाले या अपने और आम जनता के विशाल जीवन और उसके विविध संघर्षों  को आदर्श मानकर वैचारिक उर्जा प्राप्त करे समाज का बड़ा तबका बेचैन है अपनी गरिमा को फिर से अर्जित करने को। कुछ जनवादी व प्रगतिशील संगठन इस बेचैनी को आवाज देने जनता को वर्गीय अधरों पर लामबंद करने को प्रयास रत हैं
         आने वाले समय में गरीब और कमजोर तबकों , दलितों, युवाओं और  खासकर महिलाओं का अशक्तिकरण तथा इन तबकों का और भी हासिये पर धकेला  जाना साफ़ तौर पर उभरकर रहा है। इन तबकों का अपनी जमीन से उखड़ने ,उजड़ने  तबाह होने का दौर शुरू हो चुका है और आने वाले समय में और तेज होने वाला है हरियाणा में आज शिक्षित,अशिक्षितऔर अर्धशिक्षित युवा लड़के लड़कियां मारे मारे घूम रहे हैं एक तरफ बेरोजगारी की मार है और दूसरी तरफ अंध उपभोग की लम्पट संस्कृति का अंधाधुंध प्रचार है इनके बीच में घिरे ये युवकों  युवतियों का एक हिस्सा  लम्पटीकरण का शिकार तेजी से होता  जा रहा  है स्थगित रचनात्मक उर्जा से भरे युवाओं को हफ्ता वसूली , नशाखोरी , अपराध और दलाली के फलते फूलते कारोबार अपनी और खीं रहे हैं बहुत छोटा सा हिस्सा भगत सिंह की विचार धारा से प्रभावित होकर सकारात्मक एजेंडे पर इन्हें लामबंद करने लगा है ज्ञान विज्ञान आन्दोलन ने भी अपनी जगह बनाई है
       प्रजातंत्र में विकास  का लक्ष्य सबको समान  सुविधाएँ और अवसर उपलब्ध करवाना होता है विकास के विभिन्न सोपानों को ikj करता हुआ संसार यदि एक हद तक विकसित हो गया है तो निश्चय ही उसका लाभ बिना किसी भेदभाव के पूरी दुनिया की पूरी आबादी को मिलना चाहिए परन्तु आज का यथार्थ ही यह है कि ऐसा नहीं हुआ आज के दौर में तीन खिलाड़ी नए उभर कर आये हैं -पहला डब्ल्यू टी -विश्व  व्यापर संगठन , दूसरा  विश्व बैंक तीसरा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोषखुली बाजार व्यवस्था के ये तीनों  हिम्मायती दुनिया के लिए  समानता की बात कभी नहीं करते बल्कि संसार में उपलब्ध महान अवसरों को पहचानने और उनका लाभ उठाने की बात करते हैंगड़बड़ यहीं से शुरू होने लगती है बहुराष्ट्रीय संस्थाओं का बाजार व्यवस्था पर दबदबा कायम है आज छोटी बड़ी लगभग 67000 बहुराष्ट्रीय संस्थाओं की  शाखाएं विश्व के कोने कोने में फ़ैली हुई हैं ये संस्थाएं विभिन्न देशों की राजनैतिक , सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों पर भी हस्तक्षेप करने लगी हैं ध्यान देने योग्य बात है कि इन सबके केन्द्रीय कार्यालय अमेरिका , पश्चिम यूरोप या जापान में हैं इनकी अपनी प्राथमिकतायें हैं बाजार व्यवस्था इनका मूल मन्त्र है हरियाणा को भी इन कंपनियों ने अपने कार्यक्षेत्र के रूप में चुना  है गुडगाँव एक जीता जागता उदाहरन  है साइनिंग गुडगाँव तो सबको दिखाई देता है मगर सफरिंग गुडगाँव को देखने को हम तैयार ही नहीं हैं । मोनसैंटो कंपनी ने कृषि जगत पर कब्ज़ा जमा लिया लगता है । 
       आज के दौर में बाहर से महाबली बहुराष्ट्रीय निगम और उनका जगमगाता बाजार और भीतर से सांस्कृतिक फासीवादी ताकतें समाज को अपने अपने तरीकों से विकृत कर रही हैं इस   बाजारवाद और कट्टरवाद की मिलीभगत जग जाहिर है इनमें से एक ने हमारी लालच और हमारी सफलताओं की निकृष्ट इच्छाओं को सार्वजनिक कर दिया है और दूसरे ने हमारे मनुष्य होने को और हमारे आत्मिक जीवन को दूषित करते हुए हमें एक हीन मनुष्य में तब्दील कर दिया है यह ख़राब किया गया मनुष्य जगह जगह दिखाई देता है जिसमें धैर्य और सहिष्णुता बहुत कम है और जिसके भित्तर की उग्रता और आक्रामकता दुसरे को पीछे धकेल कर जल्दी से कुछ झपट लेने , लूट लेने और कामयाब होकर खिलखिलाने की बेचैनी को बढ़ा  रही हैं   इस समय में समाज के गरीब नागरिकों को अनागरिक बनाकर अदृश्य हाशियों की ओर फैंका जा रहा है उनके लिए नए नए रसातल खुलते जा रहे हैं जबकि समाज का एक छोटा सा मगर ताकतवर हिस्सा मौज मस्ती का परजीवी जीवन बिता रहा है समाज के इस छोटे से हिस्से के अपने उत्सव मनते रहते हैं जो की एक कॉकटेल पार्टी की संस्कृति अख्तियार करते जा रहे हैं बाकि हरियाणवी समाज की जर्जरता बढाने के साथ साथ इस तबके के राग रंग बढ़ते हैं क्योंकि संकट से बचे रहने का , मुसीबतों को दूर धकेलने का तात्कालिक उपाय यही है यह लोग बाजार में उदारतावाद और संस्कृति में संकीर्णतावाद   पुनरूत्थानवाद  के समर्थक हैं आजकल प्रचलित हरियाणवी सीडियों में परोसे जा रहे वलगर गीत नाटकों को यही ताकतें बढ़ावा दे रही हैं असल में हमारा समाज पाखंडों और झूठों पर टिका हुआ अनैतिक समाज है इसलिए हमें जोर जोर से नैतिकता शब्द का उच्चारण करना जरूरी लगता है वस्तुत हमारे समाज में लाख की चोरी करने वाला यदि पकड़ा जाये तो पकडे जाने वाले एक रुपये की चोरी करने वाले की तुलना में महान  बना रह सकता है
      बड़ी होशियारी से हमारे मन मस्तिष्क पर बाजारवाद का स्वप्न चढ़ाया जा रहा है तमाम ठाठ बाठ के सपनों में उलझाकर बेखबरी में हमें जिधर धकेल जा रहा है हम उधर ही धिकते जा रहे हैं इसीलिए आज यह प्रश्न अति गंभीर gks उठा है की जिस ग्लोबल विलेज की चर्चा की जा रही है वह आम आदमी और खासकर गरीबों के रहने लायक है भी या नहीं | अब जबकि टेलीविजन के माध्यम से यह बाजार घर घर में प्रवेश कर चुका है तो भारत जैसे कृषि प्रधान देश में भी यह टेलीविजन बगैर परिश्रम किये ऐसो आराम परोसने का कम कर रहा  है अगर यकीन  हो तो जरा उन विज्ञापनों पर ध्यान दें जिसमें अमुक वस्तुओं को खरीदने पर कहीं सोना , कहीं टी वी , तो कहीं और कुछ दिलाने का सपना दिखा वस्तुओं का विक्रय बढाया जाता है चंद मिनटों में करोडपति बनने की उम्मीद जगाई जाती है  कुल मिलाकर किस्सा यह बनता है कि परिश्रम ,कर्तव्य,  इमानदारी इत्यादि को घर के कूड़ा दान में फैंको - खरीदो खरीदो और खरीदो और  मौज  करो
        रातों रात अमीरी  के सपने देखता युवा वर्ग इस अंधी दौड़ में तेजी से शामिल होता जा रहा है जिसमें सफलता के लिए कोई भी कीमत जायज हो सकती है धन प्राप्ति के लिए जायज नाजायज कुछ भी किया जा सकता है हमें जल्दी से जल्दी वो सारे ऐशो आराम एवम मस्ती चाहिए जो टी वी के द्वारा दिन रात परोसे जा रहे हैं हमें बहकाया जा रहा है , निकम्मा बनाया जा रहा है अश्लीलता को मौज मस्ती का पर्याय बता दिनोंदिन हमें अति उप भोग्तावाद की अंधी गली में धकेला जा रहा है जहाँ से बहार निकलना बहुत मुश्किल होता  है अधनंगे वस्त्रों का फैशन शो अब महानगरों से निकल कर कस्बों  गाँव तक पहुँच रहा है युवा वर्ग लालायित हो उनकी नक़ल करने की होड़ में दौड़ रहा है
             मल्टीनेशनल मालामाल हो रहे हैं , भारतीय कारीगर भुखमरी की और जा रहे हैं आज आसामी सिल्क, बा लूचेरी की कारीगरी , कतकी पोचमपल्ली या बोकई के कारीगरों को मल्टीनेशनल के होड़ में खड़ा कर दिया गया है। अब इस गैर  बराबरी की  होड़ में भारतीय कारीगर चाहे वह किसी भी क्षेत्र का हो  कैसे टिक पायेगा ? इम्पोर्टिड चीजों को प्रचारित कर उन्हें स्टेटस सिम्बल बनाया जा रहा है और भारतीय कशीदाकारी को तबाह किया जा रहा है भारतीय बेहतर कालीनों को बाल मजदूरी के नाम पर पश्चिमी देश प्रतिबंधित कर रहे हैं ताकि भारतीय वस्तु वहां के बाजार में प्रवेश कर पाए मगर उनकी वस्तुएं हमारे बाजार पर छा जाएँ हमारे भारतीय हुनर के लिए यह मौत का फरमान ही तो है बाजारवाद की इस होड़ में मल्टीनेसनल के सामने हमारी कारीगरी ही नहीं भारतीय कम्पनियाँ भी कब तक टिक पाएंगी यह एक अहम् सवाल है। पूरे भारत के सभी दरवाजे उनके लिए खोल दिए गए हैं
              अब मैकडोनाल्ड को ही लिया जाये | यह महानगरों तक नहीं सिमित रहा अब तो शहर शहर , गली गली में मैकडोनाल्ड , हमारे बच्चों को बर्गर , पिज्जा फ्री के उपहार दे कर खाने की आदत डालेगा , रिझाएगा , फँसाएगा ताकि कल को वह पूरी , परांठा , इडली , डोसा भूल जायें और बर्गर ओइज्ज के बगैर रह ही नहीं पाऐं  आखिर बच्चे ही तो कल का भविष्य हैं जिसने उनको जीता उसी की तूती बोलेगी कल पूरे भारत देश में पहले जैसे साम्राज्य स्थापित करने के लिए देश विशेष की संस्कृति , कारीगरी , हुनर, व्यवसाय एवं शिक्षा को नष्ट किया जाता था ताकि साम्राज्य की पकड़ देश विशेष पर और मजबूत हो इसी प्रकार आज बाजार के लिए देश प्रदेश विशेष के हुनर , कारीगरी , व्यवसाय ,शिक्षा एवं संस्कृति पर ही हमला बोल जा रहा है और हमारे मीडिया इस मामले में मल्टीनेसनल की भरपूर सहायता कर रहे हैं हरियाणा में अब गुनधा  हुआ आट्टा , अंकुरित मूंग, चना आदि भी विदेशी कम्पनियाँ लाया करेंगी कूकीज , चाकलेट  केक हमारे घर की शोभा होंगे  जलेबी और रसगुल्ले अतीत की यादगार होंगे भारतीय कुटीर ऊद्योग के साथ साथ अन्य कम्पनियाँ भी मल्टीनेसनल के पेट में चली जायेंगी
      सवाल यही है कि क्या बिना किसी विचार के इतना अन्याय से भरा असमानताओं पर टिका समाज टिका रह सकता है ? यदि नहीं तो इसके ठीक उल्ट विचार भी अवश्य है जो एक समता पर टिके न्यायपूर्ण समाज की परिकल्पना रखता है उस विचार से नजदीक का सम्बन्ध बनाकर ही इस बेहतर समाज के निर्माण में हम अपना योगदान दे सकते हैं इसके बनाने के सब साधन इसी दुनिया में इसी हरियाणा में मौजूद हैं जरूरत है उस नजर को विकसित करने की आज मानवता के वजूद को खतरा है यह इस विचारधारा का या उस विचारधारा का मसला नहीं है यह एक देश का सवाल नहीं है यह एक प्रदेश का सवाल नहीं है यह पूरी दुनिया का सवाल है जिस रास्ते पर दुनिया अब जा रही है उ रास्ते पर मानवता का विनाश निश्चित है हरियाणा के विकास मॉडल में भी यह साफ़ प्रकट हो रहा है नव वैश्वीकरण की प्रक्रिया से विनाश ही होगा विकास नहीं मगर अब दुनिया यह सब समझ रही है हरियाणावासी भी समझ रहे हैं मानवता अपनी गर्दन इस वैश्वीकरण की कुल्हाडी के नीचे नहीं रखेगी मानवता का जिन्दा रहने का जज्बा और मनुष्य के विचार की शक्ति ऐसा होना असंभव कर देगी हरियाणा में नव जागरण ने अपने पाँव रखे हैं युवा लड़के लड़कियां , दलित, सीमान्त किसान और महिलाएं इसके अगवा दस्ते होंगे और समाज सुधर का काम अपनी प्रगतिशील दिशा अवश्य पकड़ेगा |
नैशनल कैपिटल रीजन स्कीम के तहत हरियाणा का ताना बाना काफी बदल रहा है और और भी बदलेगा फोरलेन , टोल प्लाजा , फलाई ओवर , सेज़ के तहत उपजाऊ जमीनों के अधि ग्रहण के चलते खेती योग्य जमीन कम से कमतर होती जा रही है जीडीपी में एग्रीकल्चर का योगदान काफी कम हुआ है नए हरि याणा का सवरूप क्या होगा ? इस पर कोई चर्चा नहीं है औद्योगिकीकरण के दिशा क्या होगी ? नौकरी पैदा करने वाली या नौकरी खत्म करने वाली ? वातावरण का क्षरण रोकने के बारे क्या किया जायेगा ? जेंडर फ्रैंडली , ईको फ्रैंडली , और सामाजिक न्याय प्रेमी विकास का नक्शा क्या होगा ? ये कुछ मुद्दे हैं जिन पर हरियाणा के प्रबुद्ध नागरिकों को सोच विचार करना चाहिए और फिर एक जनता का चुनाव अजेंडा बना कर सभी राजनैतिक पार्टीयों के सामने पेश करके उनकी इस अजेंडे पर अपनी पोजीसन रखने को  कहा  जाना चाहिए इस सबके लिए जनता का जनपक्षीय राजनीति  के लिए लामबंद होना बहुत जरूरी है

रणबीर सिंह दहिया

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